राजस्थान की राजधानी जयपुर को "गुलाबी नगरी" कहा जाता है। यहाँ की किलों और महलों में भारतीय शाही इतिहास की झलक दिखाई देती है। इन्हीं में से एक है सिटी पैलेस जयपुर, जो न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है बल्कि जयपुर के राजघराने की भव्यता और संस्कृति का भी प्रतीक है। यह पैलेस आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। लेकिन इसके पीछे छिपा है सैकड़ों साल पुराना इतिहास, जो इसे खास बनाता है।
निर्माण और स्थापत्य कला
सिटी पैलेस का निर्माण 18वीं शताब्दी में जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था। इसका निर्माण कार्य 1729 से शुरू हुआ और 1732 तक चला। यह महल पुराने राजघराने की रॉयल लाइफ और प्रशासनिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र था।इसका डिज़ाइन भारतीय, मुग़ल और यूरोपीय वास्तुकला का अद्भुत संगम है। महल को पत्थरों, संगमरमर और बारीक नक्काशीदार लकड़ी से सजाया गया है। इसके मुख्य द्वारों और दीवारों पर की गई रंगीन चित्रकारी राजस्थानी संस्कृति और कला को दर्शाती है।
महल का आंतरिक हिस्सा
सिटी पैलेस परिसर में कई महत्वपूर्ण भवन और आंगन हैं। इनमें से कुछ मुख्य आकर्षण इस प्रकार हैं:
चंद्र महल – यह सिटी पैलेस का सबसे खास और सात मंजिला हिस्सा है। यहाँ राजपरिवार की पीढ़ियों ने निवास किया है। इसके ऊपरी मंजिल से पूरे जयपुर शहर का शानदार नज़ारा देखा जा सकता है। आज भी इसका एक हिस्सा राजघराने के सदस्यों के उपयोग में है, जबकि बाकी हिस्सा म्यूजियम में बदल दिया गया है।
मुबारक महल – यह महल सवाई माधो सिंह द्वितीय ने बनवाया था। इसमें यूरोपीय और राजस्थानी स्थापत्य का अद्भुत मिश्रण है। वर्तमान में यह एक वस्त्र संग्रहालय है, जहाँ पुराने राजघराने के शाही परिधान, पोशाकें और कढ़ाईदार कपड़े प्रदर्शित किए जाते हैं।
दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास – ये दोनों आंगन दर्शाते हैं कि किस तरह राजा अपने दरबार लगाते थे। दीवान-ए-आम आम जनता के लिए था जबकि दीवान-ए-खास केवल खास दरबारियों और राजघराने के लिए। यहाँ विशाल चांदी के कलश रखे गए हैं, जिन्हें दुनिया के सबसे बड़े चांदी के बर्तन माना जाता है।
पृथ्वी विलास और सुंदर विलास – ये महल कला, संगीत और साहित्य प्रेमियों के लिए बनाए गए थे। यहाँ कभी कवि सम्मेलन और शाही संगीत महफ़िलें आयोजित होती थीं।
इतिहास और राजनीतिक महत्व
सिटी पैलेस सिर्फ एक निवास स्थान नहीं था बल्कि यह जयपुर रियासत की राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था। यहाँ राजा अपने मंत्रियों के साथ बैठकर फैसले लेते थे। यही वह जगह थी जहाँ रियासत की नीतियाँ और योजनाएँ तैयार होती थीं।ब्रिटिश काल के दौरान भी सिटी पैलेस का महत्व कम नहीं हुआ। उस समय जयपुर के महाराजा ब्रिटिश सरकार के साथ संबंधों के लिए इसी महल का इस्तेमाल करते थे। कई ब्रिटिश अधिकारी और गवर्नर यहाँ मेहमान बनकर आए।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
सिटी पैलेस केवल राजनीति और प्रशासन का केंद्र नहीं था बल्कि यह धार्मिक दृष्टि से भी अहम रहा है। यहाँ भगवान गोविंद देव जी का मंदिर स्थित है, जहाँ आज भी भक्त बड़ी संख्या में पूजा-अर्चना करने आते हैं। यह मंदिर जयपुर राजघराने की आस्था का प्रमुख प्रतीक है।महल परिसर में समय-समय पर धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव भी आयोजित होते रहे हैं। आज भी दीपावली और होली जैसे त्योहारों पर महल को शाही अंदाज में सजाया जाता है।
आज का सिटी पैलेस
आज सिटी पैलेस एक म्यूजियम और पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। यहाँ आने वाले पर्यटक प्राचीन हथियार, पेंटिंग्स, राजघराने की पोशाकें, शाही फर्नीचर और बेशकीमती चीज़ें देख सकते हैं।
पर्यटकों के लिए खास आकर्षण है –
शाही परिधान और आभूषण
विशाल चांदी के कलश
पुराने समय के हथियार और कवच
भव्य चित्रकारी और भित्तिचित्र
इसके अलावा महल के आंगन और गलियारों में घूमते हुए पर्यटक शाही जीवनशैली का अनुभव करते हैं।
पर्यटन में योगदान
जयपुर के पर्यटन उद्योग में सिटी पैलेस की बड़ी भूमिका है। हर साल लाखों देशी और विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं। गुलाबी नगरी के बीचों-बीच स्थित होने के कारण यह आसानी से पहुँच योग्य है।यह महल राजस्थान की शान और भारतीय संस्कृति की धरोहर के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ का स्थापत्य, इतिहास और शाही अंदाज़ पर्यटकों को बार-बार आकर्षित करता है।
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