डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल नवंबर में जब राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की थी तो भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, 'मैं जानता हूं कि कई देश अमेरिका को लेकर नर्वस हैं लेकिन भारत उन देशों में से नहीं है.'
जयशंकर ने पीएम मोदी और ट्रंप के बीच अच्छे निजी संबंधों का भी ज़िक्र किया था. लेकिन अब ट्रंप के रुख़ को देखते हुए शायद ही जयशंकर ऐसी बातें करें.
ट्रंप का रुख़ पाकिस्तान को लेकर पूरी तरह से बदला हुआ दिख रहा है. बीएलए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) और मजीद ब्रिगेड को अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल कर दिया है. पाकिस्तान लंबे समय से इसकी मांग कर रहा था. इसे भी पाकिस्तान की विदेश नीति की जीत के रूप में देखा जा रहा है.
पाकिस्तान के सेना प्रमुख और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर पिछले हफ़्ते अमेरिका के फ्लोरिडा में अमेरिकी जनरल माइकल कुरिला के रिटायरमेंट समारोह में शरीक होने गए थे.
माइकल कुरिला मध्य-पूर्व में अमेरिकी सैन्य बल के कमांडर रहे थे. जनरल कुरिला ने इससे पहले आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में साझेदारी के लिए आसिम मुनीर की तारीफ़ की थी.
वहीं जून महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर बुलाया था.

आसिम मुनीर व्हाइट हाउस में तब लंच कर रहे थे, जब पाकिस्तान और भारत के बीच सैन्य टकराव हुए महज एक महीना ही हुआ था. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को लेकर बहुत ही सख़्त थे लेकिन दूसरे कार्यकाल में ऑपरेशन सिंदूर के बाद उनका रुख़ पाकिस्तान के प्रति पूरी तरह से बदला दिख रहा है.
पाकिस्तान में 2006 से 2010 तक भारत के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिन्दू' की संवाददाता रहीं निरूपमा सुब्रमण्यम मानती हैं कि पाकिस्तान ने ट्रंप को इस बार भारत की तुलना में ज़्यादा ठीक से पहचाना.
निरूपमा सुब्रमण्यम कहती हैं, ''मेरा मानना है कि भारत की तुलना में पाकिस्तान ने ट्रंप को ज़्यादा ठीक से समझा. पाकिस्तान ने मौक़े का फ़ायदा भी बहुत तरीक़े से उठाया. पाकिस्तान को बहुत सालों बाद आसिम मुनीर की तरह बिल्कुल ही अलग किस्म का सेना प्रमुख मिला है. ऑपरेशन सिंदूर से पहले आसिम मुनीर की स्थिति बहुत ही कमज़ोर थी. पाकिस्तान का मानना है कि भारत के साथ ऑपरेशन सिंदूर में उसकी जीत हुई है. पाकिस्तान दावा कर रहा है कि उसने भारत के पाँच रफ़ाल मारकर गिरा दिए. ऐसे में आसिम मुनीर का प्रोफ़ाइल पाकिस्तान में बहुत ऊपर चला गया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद ही उन्हें फील्ड मार्शल बना दिया गया.''
एक तरफ़ पाकिस्तान में आसिम मुनीर का ओहदा बढ़ा तो दूसरी तरफ़ ट्रंप ने युद्धविराम कराने का श्रेय लिया. युद्धविराम की घोषणा भी ट्रंप ने ही सोशल मीडिया के ज़रिए की थी. पाकिस्तान ने ट्रंप को खुलकर इसका श्रेय दिया लेकिन भारत में विपक्षी पार्टियों ने सवाल उठाया कि ट्रंप कौन होते हैं, युद्ध रुकवाने वाले. वहीं मोदी सरकार ने ट्रंप के दावे को नकार दिया और कहा कि पाकिस्तान के आग्रह पर युद्धविराम हुआ था न कि ट्रंप की मध्यस्थता के कारण.
निरूपमा सुब्रमण्यम कहती हैं, ''भारत ने ट्रंप को श्रेय नहीं दिया तो पाकिस्तान ने इसमें मौक़ा देखा. भारत इसी से ख़ुश था कि प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप का पर्सनल संबंध है. काबुल एयरपोर्ट पर धमाका करने वाले मास्टरमाइंड को पाकिस्तान ने यूएस के हवाले कर दिया था. इसे लेकर ट्रंप ने पाकिस्तान की बहुत तारीफ़ की थी. ट्रंप ने जब युद्धविराम का श्रेय लिया तो पाकिस्तान ने इसे न केवल माना बल्कि शुक्रिया भी कहा. पाकिस्तान यहीं नहीं रुका बल्कि शहबाज़ शरीफ़ की सरकार ने ट्रंप को शांति के नोबेल सम्मान देने के लिए सिफ़ारिश कर दी.''
इसी साल मार्च में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर-सर्विसेज़ इंटेलिजेंस यानी आईएसआई के प्रमुख आसिम मलिक ने 2021 में काबुल धमाके के 'मास्टरमाइंड' को अमेरिका के हवाले किया था. इस धमाके कुल 180 लोग मारे गए थे, जिनमें 13 अमेरिकी सैनिक भी थे.
निरूपमा सुब्रमण्यम कहती हैं, ''क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भी पाकिस्तान ने ट्रंप के मन के हिसाब से काम किया. ये सारी चीज़ें ट्रंप को पसंद आईं. ट्रंप दूसरी तरफ़ यूनिफ़ॉर्म को बहुत पसंद करते हैं. जैसे ही पाकिस्तान ने आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाया वैसे ही ट्रंप का बुलावा आ गया. दूसरी तरफ़ हम इसी बात पर रह गए कि कोई ना कोई डील कर लेंगे.''
निरूपमा सुब्रमण्यम कहती हैं कि पिछले हफ़्ते आसिम मुनीर ने भारत को जिस अंदाज़ में अमेरिका से धमकी दी, ये उनके अतिआत्मविश्वास को ही दर्शाता है कि उन्होंने ट्रंप को जीत लिया और उनकी ज़मीन से कुछ भी कह सकते हैं.
अभी स्थिति यह है कि ट्रंप जो कह रहे हैं और भारत जो कह रहा है उसमें काफ़ी अंतर है. जैसे ट्रंप ने कहा कि उन्होंने युद्ध बंद कराया लेकिन भारत ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. ट्रंप कह रहे हैं कि रूस से तेल नहीं ख़रीदो लेकिन भारत इसे भी नहीं मान रहा है. ट्रंप कह रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था बेजान है, भारत कह रहा है कि वह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
पाकिस्तान ने जिस तरह से ट्रंप को हैंडल किया, उसका फ़ायदा भी उसे होता दिख रहा है. ट्रंप ने पाकिस्तान पर 19 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया है जबकि भारत पर 50 फ़ीसदी.
- किश्तवाड़ में मचैल माता यात्रा रूट पर बादल फटने से 38 लोगों की मौत, अब तक क्या-क्या पता है?
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश- 'बिहार ड्राफ्ट सूची से हटाए गए 65 लाख वोटरों के नाम बताए ईसी'
- ट्रंप-पुतिन के बीच सहमति न बनने पर अमेरिका ने भारत पर और टैरिफ़ बढ़ाने की धमकी दी
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक़्क़ानी को लगता है कि ट्रंप भारत से फ़ायदा उठाने के लिए पाकिस्तान का कार्ड खेल रहे हैं. हक़्क़ानी ने फ़ाइनैंशियल टाइम्स से कहा, ट्रंप पाकिस्तान कार्ड आज़माकर देखना चाहते हैं कि भारत उनकी शर्तें मान ले.
अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी पाकिस्तान और ट्रंप की बढ़ती जुगलबंदी पर अपनी एक रिपोर्ट में हक़्क़ानी की टिप्पणी को शामिल किया है.
इसमें हक़्क़ानी ने कहा है, ''क्या ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका किसी के लिए भरोसेमंद हो सकता है? मोदी ने ट्रंप से संबंध मज़बूत करने में काफ़ी निवेश किया था लेकिन इसका नतीजा हम सबके सामने है. हम पाकिस्तान को इस डर के दायरे से अलग क्यों देखें?''
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में कहा था कि पाकिस्तान ने अमेरिका को झूठ और धोखा के अलावा कुछ नहीं दिया है. अमेरिका में पाकिस्तान की राजदूत रहीं मलीहा लोधी भी मानती हैं कि अमेरिका से ऐसी गर्मजोशी की उम्मीद अभी किसी को नहीं थी.
मलीहा लोधी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ''गर्मजोशी बढ़ी है लेकिन चीन ने जिस स्तर पर पाकिस्तान में निवेश किया है और आर्थिक सहायता के साथ हमारी रक्षा ज़रूरतें पूरी कर रहा है, उसकी बराबरी अमेरिका नहीं कर सकता है. अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में निरंतरता कभी नहीं रही है.''
परवेज़ हुदभाई पाकिस्तान के जाने-माने बुद्धिजीवी और लेखक हैं. उनसे पूछा गया कि क्या वाक़ई पाकिस्तान ने ट्रंप को पहचानने में भारत की तुलना में ज़्यादा समझदारी दिखाई?
परवेज़ हुदभाई कहते हैं, ''मैं थोड़ा इससे अलग देखता हूँ. मेरा मानना है कि ये दो अहंकारों का टकराव है. एक मोदी का और दूसरा ट्रंप का. मोदी की ख़्वाहिश ये थी कि पाकिस्तान को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाए. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर हुआ तो ट्रंप ने दिलचस्पी ली और सुलह कराने का दावा किया. लेकिन मोदी जी को इनकार करना पड़ा और कहा कि ट्रंप ने युद्धविराम नहीं कराया है. इसके बाद हालात बिगड़े और बिगाड़ यहाँ तक आ गया कि टैरिफ़ 25 से 50 फ़ीसदी हो गया.''
परवेज़ हुदभाई कहते हैं, ''पाकिस्तान ने ट्रंप को ख़ुश करने के लिए बहुत कुछ किया है और भारत उस हद तक नहीं गया. पाकिस्तान क्रिप्टोकरेंसी को सरकारी ख़र्चे पर ख़रीदेगा. पाकिस्तान ने नोबेल सम्मान के लिए भी ट्रंप को नामित किया. पाकिस्तान ने यह भी कहा कि हमारे यहाँ आकर तेल और रेयर अर्थ मिनिरल्स खोजो. ट्रंप को ये सारी बातें पसंद आईं. अगर हिन्दुस्तान भी ऐसा करे तो ट्रंप वहाँ भी अपनापन दिखाने लगेंगे.''
इसी साल फ़रवरी महीने में इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने वॉशिंगटन में आयोजित कंजर्वेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ़्रेंस को वीडियो लिंक के ज़रिए संबोधित करते हुए ट्रंप की प्रशंसा में कहा था कि उनकी जीत से लेफ्ट खेमा चिंतित है.
इस दौरान मेलोनी ने पीएम मोदी का भी नाम लिया था, जिस पर भारत का दक्षिणपंथी खेमा सोशल मीडिया पर काफ़ी उत्साहित दिखा था.
मेलोनी ने कहा था, ''आज जब ट्रंप, मैं, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर मिलेई या शायद मोदी कुछ कहते हैं तो इसे लोकतंत्र के लिए ख़तरा बताया जाता है. ये उनका आख़िरी दोहरा मानदंड है लेकिन हम इसके आदी हो चुके हैं. अच्छी बात यह है कि लोग अब उनके झूठ पर यक़ीन नहीं करते, चाहे वे हम पर कितना भी कीचड़ उछालें. नागरिक हमें वोट दे रहे हैं.''
तब भारत में सोशल मीडिया पर इसे ऐसे पेश किया गया था, मानो भारत का दक्षिणपंथ पश्चिम के दक्षिणपंथ से कंधे से कंधे मिलाकर चलेगा.
परवेज़ हुदभाई कहते हैं, ''पश्चिम का लेफ्ट हो या राइट उनमें गोरे रंग की श्रेष्ठता की भावना बहुत मज़बूत है. भारत के हिन्दुत्व की राजनीति को लगता है कि पश्चिम के दक्षिणपंथ के साथ सहयोग बढ़ा लेंगे तो ये उनकी समझ की कमतरी की पहचान है. मुसलमानों से नफ़रत के नाम पर भले कुछ बयानबाज़ियां हो सकती हैं लेकिन ये भी एक हद तक.''
हुदभाई कहते हैं, ''ट्रंप के बारे में कुछ भी कहना बहुत ही जोखिम भरा होता है क्योंकि इनका व्यक्तित्व बहुत ही अस्थिर है. ये अपनी बातों से बहुत जल्दी मुकर जाते हैं. मुमकिन है कि छह महीने बाद पाकिस्तान को ट्रंप गाली देने लगें और भारत को गले लगा लें. मुझे तो लगता है कि यह फौरी है. मिसाल के तौर पर ट्रंप ने अगर पाकिस्तान से कहा कि इसराइल को मान्यता दो तो बात बिगड़ जाएगी. पाकिस्तान इस मामले में इनकार ही करेगा क्योंकि लोग स्वीकार नहीं करेंगे. इसके बाद ट्रंप चिढ़ जाएंगे.''
परवेज़ हुदभाई कहते हैं, ''ऑपरेशन सिंदूर के कारण आसिम मुनीर का कद पाकिस्तान में बहुत ऊंचा हो गया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में फौज का रुतबा बहुत ही ऊपर चला गया है. ऐसे में आसिम मुनीर जो बोल रहे हैं या भारत को धमकी दे रहे हैं तो यह उनके उस आत्मविश्वास को बता रहा है कि वही सरकार हैं. ''
आयशा सिद्दीक़ा पाकिस्तान की जानी-मानी रक्षा विश्लेषक हैं. उनसे पूछा कि वह पाकिस्तान और ट्रंप के बीच उमड़े प्यार को कैसे देखती हैं?
आयशा सिद्दीक़ा कहती हैं, ''मैं ये नहीं मानती कि ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति प्यार केवल भारत पर दबाव बनाने के लिए उमड़ रहा है. उन्हें मध्य-पूर्व, मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान के साथ कुछ हद तक भारत पर भी रोब डालने के लिए पाकिस्तान की ज़रूरत है. मैं इसको केवल भारत के संदर्भ में नहीं देखती. ट्रंप की और भी कई सारी ज़रूरतें हैं, जिनके लिए पाकिस्तान और यहाँ की सेना की ज़रूरत है.''
आयशा सिद्दीक़ा कहती हैं, ''ईरान के मामले में भी ट्रंप के लिए पाकिस्तान बहुत ही अहम देश है. एब्राहमिक एकॉर्ड में भी ट्रंप पाकिस्तान को शामिल करना चाहते हैं क्योंकि सऊदी अरब इसमें अब अकेले नहीं जाना चाहता है. मध्य-पूर्व के संदर्भ में ट्रंप को पाकिस्तान की ज़रूरत है. ट्रंप की फैमिली के बड़े स्टेक हैं. क्रिप्टोकरेंसी और माइन एंड मिनिरल्स को लेकर पाकिस्तान ने ट्रंप को बहुत कुछ आश्वासन दिया है.''
क्या आयशा सिद्दीक़ा भी मानती हैं, पाकिस्तान ने ट्रंप को ज़्यादा ठीक से डील किया या पहचाना?
सिद्दीक़ा जवाब में कहती हैं, ''देखिए ट्रंप अहंकारी हैं. हिन्दुस्तान का मसला यह है कि नरेंद्र मोदी का भी अपना स्वाभिमान है. मुझे लगता है कि कई मामलों में ये मोदी और ट्रंप के स्वाभिमान का टकराव है. मोदी अपनी अवाम को बता नहीं पा रहे हैं कि ट्रंप के कहने पर पाकिस्तान के साथ युद्धविराम किया. ये दोनों के पर्सनल ईगो का भी टकराव है.''
सिद्दीक़ा कहती हैं, ''मुझे लगता है कि भारत ने ट्रंप से कुछ ज़्यादा उम्मीद भी लगा ली थी. भारत से जो ट्रंप मांग रहे हैं, उसे इंडिया अफोर्ड नहीं कर सकता. ख़ास कर कृषि और डेयरी के क्षेत्र में. भारत के हिन्दुत्व की राजनीति को लग रहा था कि हिन्दुस्तान बहुत शक्तिशाली हो गया है और अमेरिका इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता. मुझे लगता है कि अमेरिका में ये समझ बनी है कि भारत अमेरिका के लिए चीन से लड़ने की ताक़त नहीं रखता है, ऐसे में भारत पर इतना दांव लगाने का कोई मतलब नहीं है.''
हालांकि जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एफेयर्स के डीन श्रीराम चौलिया ऐसा नहीं मानते हैं कि ट्रंप को साधने में भारत की नीति नाकाम रही है.
चौलिया कहते हैं, ''पाकिस्तान के मामले में भले अभी लग रहा है कि उसने ट्रंप को साध लिया है लेकिन यह क्षणिक है. आप ट्रंप के पहले कार्यकाल को याद कीजिए. ट्रंप ने जो अतिरिक्त 25 फ़ीसदी का टैरिफ लगाया है, उसे 27 अगस्त से लागू होना है. मुझे लगता है कि यह कभी लागू नहीं होगा. 15 अगस्त को ट्रंप और पुतिन के बीच कोई न कोई समझौता हो जाएगा. मेरा मानना है कि 25 प्रतिशत का टैरिफ भी कम होगा. ट्रंप को जो लोग नहीं समझते हैं, वही कह सकते हैं कि पाकिस्तान ने उन्हें अपने पाले में कर लिया है.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
You may also like
Nicholas Pooran बने नाइट राइडर्स के नए कप्तान, इस दिग्गज की जगह मिली बड़ी जिम्मेदारी
बूढ़े हो गए लेकिन अभी भी नहीं मिली दुल्हनˈ घर में कुंवारे बैठे हैं ये एक्टर्स जाने क्यों नहीं हो रही शादी
तेज बारिश का अलर्ट: 15 अगस्त को झांसी, बांदा, महोबा समेत यूपी के कई जिलों में बारिश
पोते के प्यार में पागल हुई दादी 52 सालˈ की उम्र में तीसरी बार रचाई शादी घरवालों ने लगाए जान से मारने की धमकी देने के आरोप
रोज़ रात दूध में इस चीज़ को मिला कर पिने से सात दिन में शरीर हो जायेगा फौलादी