अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप विदेश नीति के एक अहम मुद्दे पर यूटर्न लेते दिख रहे हैं.
अब तक ट्रंप प्रशासन का कहना था कि यूक्रेन को रूस से शांति समझौते के लिए बहुत ज़िद नहीं करनी चाहिए.
लेकिन मंगलवार को ट्रंप ने कहा कि यूरोप के समर्थन से यूक्रेन युद्ध जीत सकता है और अपनी खोई ज़मीन वापस पा सकता है.
न्यूयॉर्क में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर ज़ेलेंस्की के साथ बैठक करने के बाद ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर यूक्रेन के युद्ध जीतने की बात कही.
ट्रंप ने कहा कि रूस बिना किसी मक़सद के साढ़े तीन साल से एक ऐसी जंग लड़ रहा है, जिसे जीतने में एक असली सैन्य शक्ति को एक हफ़्ते से भी कम समय लगना चाहिए था.
ट्रंप ने रूस की सेना को एक कागज़ी शेर की तरह बताया है.
ट्रंप के काग़ज़ी शेर वाले बयान को ख़ारिज करते हुए बुधवार को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि रूसी आर्मी ने यूक्रेन में बढ़त बनाई है और अर्थव्यवस्था भी स्थिर है.
पेस्कोव ने कहा, ''जहाँ तक हमारी सेना का सवाल है तो राष्ट्रपति ने बार-बार कहा है कि हम कम नुक़सान करने की रणनीति पर बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में हमारी आक्रामकता को कमतर आँकना एक ग़लती होगी. हम बहुत सूझबूझ के साथ सैन्य कार्रवाई कर रहे हैं. हम बेयर हैं, टाइगर नहीं और काग़ज़ी शेर जैसी कोई चीज़ नहीं है.''
पाँच हफ़्ते पहले ही अलास्का में राष्ट्रपति ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से साढ़े तीन घंटे लंबी मुलाक़ात की थी.
इस मुलाक़ात के बाद ट्रंप का यही रुख़ था कि ज़ेलेंस्की को रूस से समझौता करना चाहिए और इसकी क़ीमत चाहे जो भी चुकानी पड़े.
ट्रंप ने ऐसा यूटर्न क्यों लिया, इसकी कोई ठोस वजह उन्होंने नहीं बताई है. ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के महज़ आठ महीने हुए हैं और एक अहम मुद्दे पर यूटर्न लेते दिख रहे हैं.
ट्रंप का क्यों बदला रुख़?इसी साल फ़रवरी में ट्रंप ने ज़ेलेंस्की से अपने ओवल ऑफिस में कहा था, ''अभी आप बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं. आपने ख़ुद को बहुत मुश्किल स्थिति में ला दिया है. आपके पास अभी दांव लगाने के लिए कुछ नहीं है. ऐसे में आप बहस नहीं कर सकते.''
यहाँ तक कि ट्रंप ने रूस को टैरिफ़ से अलग रखा था. इसके अलावा अलास्का में पुतिन का ट्रंप ने गर्मजोशी से स्वागत भी किया था.
ट्रंप ने अपनी ट्रूथ पोस्ट का अंत 'मैं दोनों देशों को शुभकामनाएँ देता हूँ' से किया है.
हालांकि ट्रंप ने कहा था कि वह राष्ट्रपति बनने के बाद यूक्रेन युद्ध को कुछ ही दिन या हफ़्तों में ख़त्म करवा देंगे.
अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसथ ने इसी साल 12 फ़रवरी को ब्रसेल्स में आयोजित डिफ़ेंस समिट में कहा था, ''आपकी तरह हम भी एक संप्रभु और संपन्न यूक्रेन चाहते हैं. लेकिन मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि 2014 के पहले यूक्रेन की जो सीमा थी, उसे वापस हासिल करना हक़ीक़त से परे है. इस अवास्तविक लक्ष्य के पीछे भागने से युद्ध तो लंबा खिंचेगा ही, भारी नुक़सान भी उठाना पड़ेगा.''
रूस ने मार्च 2014 में यूक्रेन के क्राइमिया को ख़ुद में मिला लिया था. तब क्राइमिया में रूस समर्थक अलगाववादियों ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ सशस्त्र विद्रोह कर दिया था.
अभी यूक्रेन के 20 प्रतिशत भूभाग पर रूस का नियंत्रण है, इसमें मुख्य रूप से यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी इलाक़े शामिल हैं.
पीट हेगसथ ने कहा था कि स्थायी शांति के लिए ज़रूरी है कि सुरक्षा की गारंटी हो और फिर से जंग शुरू ना हो.
पीट हेगसथ ने यह भी कहा था, ''यूक्रेन को नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (नेटो) की सदस्यता देने से कोई ठोस समाधान नहीं मिलेगा.''
ट्रंप ने रूस की सेना को काग़ज़ी शेर कहा है, लेकिन वह इससे पहले परमाणु शक्ति संपन्न देश रूस के बारे में ऐसी राय नहीं रखते थे.
अचानक से ऐसा क्या बदल गया है कि ट्रंप को रूस की सेना काग़ज़ी शेर लगने लगी है?
रक्षा विश्लेषक राहुल बेदी को लगता है कि कन्वेंशनल पावर में रूस काग़ज़ी शेर ही साबित हुआ है.
राहुल बेदी कहते हैं, ''पुतिन रूस को सोवियत ज़माने की ग्लोरी वापस दिलाने की आकांक्षा रखते हैं. 2014 में यूक्रेन के क्राइमिया पर कब्ज़ा इसी आकांक्षा का हिस्सा है.''
''जब पुतिन ने यूक्रेन पर फ़रवरी 2022 में हमला किया था, तो उन्हें उम्मीद नहीं थी कि नेटो और यूरोप सामने आ जाएँगे. पुतिन को लगा था कि दो हफ़्ते में अपना मक़सद हासिल कर लेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कन्वेंशनल वॉर में यूरोप और अमेरिका के हथियारों के सामने रूस के हथियार काग़ज़ी शेर ही साबित हुए हैं.''
राहुल बेदी कहते हैं, ''रूस के जितने सैनिक मारे गए हैं, उससे स्पष्ट है कि ये कन्वेंशनल पावर में काग़ज़ी शेर हैं. डिस्ट्रक्टिव पावर दो तरह की होती है- एक कन्वेंशनल और दूसरी न्यूक्लियर. अगर न्यूक्लियर तक बात आ गई, तो फिर कुछ बचेगा नहीं. लेकिन कन्वेंशनल पावर में रूस वाक़ई एक्सपोज हुआ है.''
हालाँकि फ़्रांस में भारत के राजदूत रहे जावेद अशरफ़ ट्रंप के काग़ज़ी शेर वाले बयान को उसी तरह देखते हैं, जैसे उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को 'डेड इकॉनमी' कहा था.

जावेद अशरफ़ कहते हैं, ''यह बात सही है कि यूरोप और अमेरिका के हथियारों के सामने रूस के हथियार यूक्रेन जंग में कमतर साबित हुए हैं. लेकिन ट्रंप कह रहे हैं कि एक हफ़्ते से भी कम समय में यूक्रेन युद्ध जीता जा सकता था, तो उनसे पूछना चाहिए कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान से जंग जीतने में अमेरिका को कितने हफ़्ते लगे थे? इराक़ और वियतनाम में कितने हफ़्ते लगे थे?''
जावेद अशरफ़ कहते हैं, ''दरअसल, ट्रंप की कथनी और करनी में फ़र्क़ है. उनकी नीति हर दिन बदलती है. ट्रंप को लगा था कि पुतिन से उनके अच्छे संबंध हैं तो यूक्रेन में जंग उनके राष्ट्रपति बनते ही ख़त्म हो जाएगी. लेकिन ट्रंप ना तो पुतिन को समझते हैं और ना ही रूस को. रूस ने यूक्रेन की 20 प्रतिशत भूमि पर क़ब्ज़ा किया है और मुझे नहीं लगता है कि यूक्रेन को अब वापस मिलेगी. रूस बातचीत के लिए तैयार नहीं है और फ़ैसला युद्ध में होना है तो युद्ध तो चल ही रहा है.''
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में मध्य एशिया और रूसी अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं कि पुतिन को भी अंदाज़ा नहीं था कि यह युद्ध साढ़े तीन साल होने के बाद भी जारी रहेगा.
प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, ''रूस की सेना को काग़ज़ी शेर ट्रंप भले कह सकते हैं लेकिन मेरा मानना है कि रूसी सेना के पास तबाही मचाने की क्षमता है. अगर रूस ने फ़ैसला कर लिया कि उसे बिना सोचे समझे कहीं भी हमला करना है, तो इस मामले में वह तबाही मचा सकता है. डिस्ट्रक्टिव क्षमता और युद्ध जीतने की क्षमता दोनों अलग चीज़ें हैं. जहाँ तक युद्ध जीतने की क्षमता की बात है तो ज़ाहिर है कि अमेरिका रूस से आगे है.''
प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, ''लेकिन अतीत में जितने भी हमले हुए हैं, वहाँ किसी को स्थायी जीत नहीं मिली. अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को नहीं हरा पाया. इराक़ में भी अपना मक़सद हासिल नहीं कर पाया और ईरान तो लगातार चुनौती दे ही रहा है.''
प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, ''मुझे लगता है कि अमेरिका ख़ुद को यूक्रेन युद्ध से अलग कर रहा है और सारी ज़िम्मेदारी यूरोप के माथे थोप रहा है. ट्रंप यूरोप पर दबाव बना रहे हैं कि वह भी चीन और भारत के ख़िलाफ़ टैरिफ़ लगाए. लेकिन मुझे लगता है कि यूरोप ऐसा नहीं करेगा. चीन, भारत और ब्राज़ील पहले ही ट्रंप की बात सुनने से इनकार कर चुके हैं. अगर यूक्रेन जंग में रूस के ख़िलाफ़ यूरोप भी शामिल होता है, तो युद्ध का दायरा बढ़ेगा और इसे संभालना आसान नहीं होगा.''
ट्रंप ने ट्रूथ पोस्ट में कहा है, ''हम नेटो को हथियारों की आपूर्ति जारी रखेंगे ताकि नेटो अपनी मर्ज़ी से इसका इस्तेमाल कर सके.''
न्यूयॉर्क टाइम्सने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''ट्रंप की इस टिप्पणी से ऐसा लग रहा है कि अमेरिका और नेटो दोनों के अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन सच्चाई इससे ज़्यादा जटिल है. नेटो सैन्य बलों की कमान एक अमेरिकी जनरल के हाथों में है.''
ट्रंप ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए एक बार फिर से भारत और चीन को आड़े हाथों लिया.
ट्रंप ने कहा, ''चीन और भारत रूस से तेल आयात कर रूस को यूक्रेन में युद्ध जारी रखने में मदद कर रहे हैं. यहाँ तक कि नेटो देशों ने भी रूसी ऊर्जा में आयात में बहुत बड़ी कटौती नहीं की है. मुझे तो इस बारे में दो हफ़्ते पहले पता चला और मैं इसे लेकर बहुत ख़ुश नहीं था.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
You may also like
श्रीकृष्ण की नगरी में आते ही राष्ट्रपति द्रौपदी भक्ति में रमीं, ठाकुरजी के दर्शन से हुईं अभिभूत
पच्चीस हजार रुपए के ईनामी बदमाश को पुलिस ने किया गिरफ्तार
बाबा रामदेव के नुस्खे: 7 दिन में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के उपाय
एशिया कप 2025: पाकिस्तान ने बांग्लादेश को 11 रन से हराया, फाइनल का कटाया टिकट
महिला की हत्या के आरोपी की पुलिस मुठभेड़ में गिरफ्तारी