कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय महिलाओं को गर्भ निरोधक उपाय बेच रही हैं, जिनमें से कुछ गोलियों के रूप में उपलब्ध हैं। इन उत्पादों के विभिन्न नाम हैं, जैसे Norplant, Depo Provera, I-Pill, और E-Pill। यह जानकर दुख होता है कि ये कंपनियाँ अपने देशों में इन उत्पादों को नहीं बेचतीं, लेकिन भारत में इन्हें धड़ल्ले से बेच रही हैं। उदाहरण के लिए, Depo Provera तकनीक अमेरिका की एक कंपनी द्वारा विकसित की गई थी, जिसे वहां प्रतिबंधित कर दिया गया था। अब यह कंपनी भारत में इसे बेचने के लिए सरकार से समझौता कर चुकी है।
यह इंजेक्शन भारतीय महिलाओं को दिए जा रहे हैं, और कई अस्पतालों में डॉक्टर इन्हें लगवा रहे हैं। इसके गंभीर परिणाम हो रहे हैं, जैसे महिलाओं का मासिक चक्र बिगड़ना और अंततः कैंसर का होना। कई बार तो महिलाओं को यह भी नहीं पता चलता कि उन्हें यह इंजेक्शन दिया गया है, जिससे उनकी जान चली जाती है।
इसी तरह, NET EN नामक गर्भ निरोधक तकनीक भी है, जो स्टेरॉयड के रूप में दी जाती है, जिससे गर्भपात होता है और हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं। RU 496 और अन्य तकनीकें भी महिलाओं के लिए समस्याएं पैदा कर रही हैं।
इन गर्भ निरोधक उपायों के कारण महिलाओं के uterus की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, जिससे कई महिलाएँ मासिक चक्र के दौरान बेहोश हो जाती हैं। हर साल विदेशी कंपनियाँ इस व्यापार से अरबों रुपये कमा रही हैं।
हाल के वर्षों में, कंडोम का व्यापार भी तेजी से बढ़ा है, जिसका प्रचार AIDS के बहाने किया जा रहा है। कंपनियाँ यह नहीं बतातीं कि संयम और वफादारी भी महत्वपूर्ण हैं। इसके परिणामस्वरूप, पिछले 15 वर्षों में कंडोम की बिक्री में भारी वृद्धि हुई है।
हालांकि, AIDS एक गंभीर बीमारी है, जो केवल यौन संबंधों से नहीं फैलती। इसके अलावा, बिना जांच के रक्त चढ़ाने से भी यह फैल सकता है। लेकिन कंपनियाँ केवल यौन संबंधों को ही इसके प्रसार का मुख्य कारण मानती हैं।
भारत में लगभग 40 करोड़ रुपये का कंडोम देशी कंपनियाँ और इतनी ही विदेशी कंपनियाँ बेच रही हैं। 1982 से सरकार ने विदेशी कंडोम के आयात पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया था, जिसके बाद बाजार में विदेशी कंडोम की भरमार हो गई।
इस प्रकार, सरकार और विदेशी कंपनियाँ AIDS रोकने से ज्यादा कंडोम की बिक्री बढ़ाने में रुचि रखती हैं, जिससे समाज और संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
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