नई दिल्ली: जम्मू और कश्मीर में राज्यसभा की 4 सीटें हैं, जो 2021 से ही खाली पड़ी हुई हैं। तब वहां विधानसभा चुनाव नहीं हुए थे। लेकिन, पिछले साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव भी हो चुके हैं और अभी तक राज्यसभा चुनाव का रास्ता साफ नहीं हुआ है। इस बीच एक रिपोर्ट आई है कि चुनाव आयोग ने केंद्र से जम्मू-कश्मीर की राज्यसभा सीटों के कार्यकाल को क्रमबद्ध करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश की गुजारिश की थी, जिसे केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ठुकरा दिया है।
‘कार्यकाल अलग करने का प्रावधान नहीं’
अभी जम्मू और कश्मीर की चारों सीटें खाली हैं, जिसके लिए मौजूदा व्यवस्था के हिसाब से एक ही साथ चुनाव होना है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि 22 अगस्त को केंद्रीय कानून मंत्रालय ने चुनाव आयोग को बताया है कि राज्यसभा की इन चारों सीटों के कार्यकाल को अलग-अलग करने के लिए राष्ट्रपति की ओर से आदेश जारी किए जाने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है, जिसकी गुजारिश चुनाव आयोग की से की गई थी।
द्विवार्षिक चुनाव वाला सिस्टम चाहता था आयोग
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 83 के अनुसार राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसके एक-तिहाई सदस्यों का कार्यकाल प्रत्येक दो साल में खत्म होता है। राज्यसभा के सांसदों का पूर्णकालिक कार्यकाल 6 वर्षों का होता है और अगर बीच में किसी सीट के खाली होने पर चुनाव होते हैं तो संबंधित सदस्य का कार्यकाल उतने ही समय के लिए होता है, जितना कि उन 6 वर्षों में बचा रह जाता है।
30 वर्षों में बिगड़ी द्विवार्षिक चुनाव वाली व्यवस्था
चुनाव आयोग ने इसी साल पहले इसी स्थिति को देखते हुए कानून मंत्रालय को लिखा था कि जम्मू और कश्मीर के लिए राष्ट्रपति से ऐसा आदेश जारी करवाया जाए, ताकि वहां राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल इस तरह से निर्धारित हो जाए, जिससे द्विवार्षिक चुनाव वाली व्यवस्था लागू हो जाए। दरअसल, बीते 30 वर्षों में कई बार राष्ट्रपति शासन रहने की वजह से वहां सभी राज्यसभा सीटों का कार्यकाल एक समान हो गया है।
पंजाब और दिल्ली में भी नहीं है यह व्यवस्था
केंद्र की ओर से चुनाव आयोग को बताया गया है कि जम्मू और कश्मीर के लिए इस तरह का आदेश जारी करने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन की जरूरत पड़ेगी और यह उन सभी राज्यों में लागू करना होगा, जहां राज्यसभा के लिए द्विवार्षिक चुनाव की परंपरा टूट चुकी है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव आयोग ने सिर्फ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल अलग-अलग निर्धारित करने का अनुरोध किया था, जबकि पंजाब और दिल्ली में भी यही स्थिति है। पंजाब से 7 और दिल्ली से 3 राज्यसभा सदस्य एकसाथ ही चुने जाते हैं। इन राज्यों में भी समय के साथ यह सिस्टम खत्म हो गया है।
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