नई दिल्ली, 17 मई . अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मंदिर में प्रतिष्ठित राम लला की मूर्ति के सुप्रसिद्ध शिल्पकार अरुण योगीराज ने हाल ही में अबू धाबी स्थित बीएपीएस हिंदू मंदिर में दर्शन किए. यह यात्रा उनके लिए केवल एक भौतिक भ्रमण नहीं, बल्कि श्रद्धा, भावनात्मक लगाव और आध्यात्मिक अनुभूति से परिपूर्ण एक विलक्षण अनुभव थी.
मंदिर की भव्यता, दिव्यता और स्थापत्य कला से अभिभूत होकर उन्होंने कहा, “मैं निशब्द हूं. यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक दिव्य शिल्प है. श्रद्धा से तराशा गया, विश्वास से संकल्पित और प्रेम से साकार हुआ. विदेश की भूमि पर इतनी उत्कृष्ट कला और भक्ति को देखना अत्यंत भावुक कर देने वाला अनुभव है. मैंने जीवनभर भारतीय मूर्तिकला की परंपरा को जीवित रखने का प्रयास किया है और अबू धाबी में इस अद्भुत मंदिर को देखना मेरे लिए गर्व और कृतज्ञता का क्षण है. यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा. यह केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि वैश्विक शांति और एकता का प्रतीक बनेगा.”
अबू धाबी में स्थित बीएपीएस हिंदू मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, स्थापत्य कला और वैश्विक सहिष्णुता का प्रतीक बन चुका है. यह मध्य पूर्व का पहला पारंपरिक पत्थर से निर्मित हिंदू मंदिर है, जो बिना स्टील और कंक्रीट के, प्राचीन हिंदू शिल्पशास्त्रों के अनुसार निर्मित किया गया है. इस भव्य मंदिर को भारत के दो हजार से अधिक कुशल शिल्पकारों ने अपनी कला से सजाया है. इसका निर्माण संयुक्त अरब अमीरात की सरकार द्वारा भेंट की गई भूमि पर हुआ है, जो भारत और यूएई के बीच मजबूत और ऐतिहासिक संबंधों को दर्शाता है.
मंदिर परिसर में सात अलंकृत देवालय हैं, जो हिंदू शास्त्रों की अमर कथाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं. इसके अतिरिक्त, परिसर में एक सांस्कृतिक केंद्र, पुस्तकालय, शाकाहारी भोजनालय, सभागार और प्रदर्शनी हॉल भी मौजूद हैं, जो इसे एक समग्र आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाते हैं. फरवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूएई के प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में इस मंदिर का उद्घाटन हुआ, जिसने इसे एक ऐतिहासिक और अंतर्राष्ट्रीय महत्व का स्थल बना दिया.
अरुण योगीराज की यह यात्रा न केवल एक शिल्पकार की श्रद्धा थी, बल्कि एक दिव्य रचना को समर्पित आत्मीय भावनाओं की सजीव अभिव्यक्ति भी थी. बीएपीएस मंदिर की आध्यात्मिक ऊंचाई और स्थापत्य कला की उत्कृष्टता को उन्होंने जिस प्रकार से अनुभव किया और साझा किया, वह भारतीय संस्कृति की वैश्विक प्रतिष्ठा और भावनात्मक गहराई का प्रमाण है. यह एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा.
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पीएसके/एकेजे
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