New Delhi, 3 नवंबर . तेल अवीव की उस रात हवा में उम्मीद की गूंज थी. 4 नवंबर 1995 को हजारों लोग ‘शांति रैली’ में शामिल थे, और मंच पर इजरायल के Prime Minister ‘यित्जाक राबिन’ मुस्कुराते हुए खड़े थे. वह युद्ध के अनुभवी सैनिक थे लेकिन उस दिन वे हथियार नहीं, शांति का गीत गा रहे थे. भीड़ “शीर लाशलोम” यानी “शांति का गीत” गा रही थी, और राबिन भी उसका हिस्सा थे. उनके हाथों में एक कागज था जिस पर गीत के बोल लिखे थे.
गीत खत्म हुआ, तालियां गूंजीं, और मंच से उतरते वक्त भी राबिन के चेहरे पर वही सुकून था. लेकिन कुछ ही क्षणों में, भीड़ के बीच से एक सरफिरा आगे आया और गोली चला दी. तीन गोलियां, और शांति का गीत अधूरा रह गया. वह कागज जिस पर गीत के बोल लिखे थे, राबिन की जेब में खून से सना मिला. उस रात सिर्फ एक नेता की मौत नहीं हुई, बल्कि एक सपना- जिसमें युद्ध से थकी दुनिया को फिर से संवाद पर भरोसा था भी, दफन हो गया.
हत्या करने वाले का नाम इगल आमीर था. एक यहूदी कट्टरपंथी जिसने राबिन की नीतियों को ‘देशद्रोह’ माना. उसे विश्वास था कि फिलिस्तीन के साथ समझौता इजरायल की धार्मिक और Political आत्मा को कमजोर कर देगा. राबिन को अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन कुछ ही देर में उनकी मृत्यु की घोषणा कर दी गई. वह उस वक्त 73 वर्ष के थे. इस खबर ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया.
वैसे, राबिन की पहचान विरोधाभासों से भरी थी. उन्होंने 1967 के ‘सिक्स-डे वॉर’ में सेना का नेतृत्व किया, लेकिन बाद में वही ओस्लो समझौते के जरिए फिलिस्तीन से शांति की कोशिश करने वाले पहले Prime Minister बने. यासर अराफात से उनकी ऐतिहासिक हैंडशेक की तस्वीर आज भी दुनिया भर के संग्रहालयों में उम्मीद की मिसाल है. इसके चलते ही उन्हें 1994 में शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लेकिन उसी शांति प्रयास ने उनके देश के कुछ लोगों के भीतर नफरत की दीवारें खड़ी कर दीं. उन्हें ‘देशद्रोही’ कहा गया और उस नफरत ने आखिरकार उनके सीने में गोलियां उतार दीं.
राबिन की हत्या ने इजरायल और पूरी दुनिया को झकझोर दिया. यह वह क्षण था जब सबने महसूस किया कि शांति की राह सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि साहस से बनती है. तेल अवीव में जिस जगह यह घटना हुई, वहीं आज ‘राबिन स्क्वायर’ बना है — जहां हर साल लोग श्रद्धांजलि देने के लिए जुटते हैं. मोमबत्तियां जलाते हैं और वही गीत फिर से गाते हैं, जो उस रात अधूरा रह गया था- ‘शीर लाशलोम.’ उस गीत की पंक्तियां अब भी गूंजती हैं, जिसका अर्थ है “शांति की ओर देखो, युद्ध की नहीं; वह दिन आ सकता है जब हमारे दिल फिर से एक दूजे के लिए खुल सकें.”
–
केआर/
You may also like

कोचिंग सेंटर से घर जा रही छात्रा को बाइक सवार छात्र ने मारी गोली, दोनो एक ही जगह कर रहे JEE मेंस की तैयारी

सिर्फ हेल्थ इंश्योरेंस नहीं, Critical Illness Cover भी है जरूरी, जानें क्यों

अमल झूठ बोल रहा... अवेज दरबार ने मलिक साहब की उड़ाईं धज्जियां, मालती चाहर के सच से हटाया पर्दा, सब उगल डाला

Bihar Election: तेजस्वी ने महिलाओं के लिए की योजना की घोषणा, सत्ता में आने पर सालाना मिलेगी 30,000 रुपये की वित्तीय सहायता

Monday Box Office: 'बाहुबली द एपिक' की चौथे दिन धम्म से गिरी कमाई, 'द ताज स्टोरी' ने सोमवार को फिर से चौंकाया




