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दिल और दिमाग के मेल से बनती है सच्ची कला : शेखर कपूर

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मुंबई, 9 मई . फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने भावनाओं और रचनात्मकता को लेकर अपने विचार साझा किए, जिसमें वह यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या विचार सिर्फ दिमाग की उपज हैं, या फिर वे दिल की भावनाओं से भी जन्म लेते हैं. इस पर उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी शेयर किया.

शेखर कपूर ने इंस्टाग्राम पोस्ट में रचना, विचार और दिल-दिमाग की भूमिका को लेकर एक गहरा दृष्टिकोण साझा किया. उनके अनुसार, दिमाग वह होता है जो विचारों को संभालता, तोलता और नियंत्रित करता है और दिल आंतरिक, सहज और गहराइयों से जुड़ा होता है. उन्होंने एक अहम सवाल पूछा, ‘क्या दिल सोच सकता है?’ इसके आगे उन्होंने कविता की लाइन लिखी, “दिल किसी एक पल का नहीं होता, वह ‘शाश्वत अभी’ का हिस्सा है.” यानी दिल का अनुभव समय की सीमाओं से परे होता है, वह उस गहराई से सोचता है जो भावना और आत्मा से जुड़ी होती है.

शेखर ने पोस्ट के कैप्शन में लिखा, “विचार कहां से आते हैं? दिमाग से या दिल से?” अगर दिमाग से आते हैं, तो वे सोच-समझकर, नियंत्रित और तर्कपूर्ण होते हैं. लेकिन अगर विचार दिल से आते हैं, तो वे सहज, बहाव में और शाश्वत होते हैं. क्या दिल सोचता है? नहीं, दिल नहीं सोचता… लेकिन फिर भी दिल से निकली चीजें ज्यादा गहरी और टिकाऊ होती हैं. दिमाग से निकले विचार अक्सर अतीत और भविष्य के बीच झूलते रहते हैं — जैसे हां, शायद, शायद नहीं…”

उन्होंने आगे लिखा, ”दिल किसी पल से जुड़ा है, नहीं.. दिल किसी एक पल का नहीं होता, क्योंकि ‘पल’ भी गुजर जाता है. दिल उस ‘अब’ से जुड़ा होता है जो स्थायी है. ‘मेरे सबसे अच्छे गाने वो थे, जिन्हें मैं उतनी तेजी से लिखता गया, जितनी तेजी से मेरी पेंसिल चल पाई.’ मेरे लिए सबसे ईमानदार और सच्चे विचार तब आते हैं, जब मैं उस प्रक्रिया से हट जाता हूं. तब सच्ची कला जन्म लेती है.”

पीके/एएस

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