प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट का जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के दोषी को लेकर बड़ा फैसला सामने आया है। हाई कोर्ट ने कहा कि जेजे एक्ट में दोषी किशोर की दोष सिद्धि नौकरी में नियुक्ति के लिए योग्यता का पैमाना नहीं हो सकती है। हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी किशोर को उसके किए गए अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है तो उसकी दोष सिद्धि को नौकरी में नियुक्ति के लिए अयोग्यता नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों के लिए देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 19 पर भरोसा जताया। यह अधिनियम किशोर न्याय (बच्चों के देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 24 के लगभग समान है।
हाई कोर्ट ने जेजे एक्ट के अधिनियम पर भरोसा करते हुए कहा कि इसके तहत किशोर की दोष सिद्धि को सेवाओं में नियुक्ति के लिए अयोग्यता नहीं माना जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 19 में प्रावधान है कि किसी अन्य कानून में किसी बात के होते हुए भी कोई किशोर जिसने कोई अपराध किया है और इसके साथ इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की गई है। उसे ऐसे कानून के तहत अपराध के लिए दोष सिद्धि से जुड़ी अयोग्यता, यदि कोई हो तो नहीं मिलेगी।
याचिका पर आया फैसलाइलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने पुंडरीकाक्ष की याचिका पर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 19(1) के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि यह एक गैर बाधित खंड से शुरू होता है, जो किसी और मामले में किसी अन्य कानून की प्रायोजकता को बाहर करता है।
पीठ ने कहा कि अधिनियम में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि एक किशोर जिसने कोई अपराध किया है। उसके साथ अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई है हुई है। उसे ऐसे कानून के तहत किसी अपराध के लिए दोष सिद्धि से जरूरी अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
याची कर्मचारी पुंडरीकाक्ष ने विभाग की ओर से संचालित भर्ती अभियान 2019 में पीजीटी पद के लिए आवेदन कर प्रतिभाग किया था। याची पीजीटी में नवोदय विद्यालय गौरीगंज में नियुक्त हुआ था। इसके खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
हाई कोर्ट ने जेजे एक्ट के अधिनियम पर भरोसा करते हुए कहा कि इसके तहत किशोर की दोष सिद्धि को सेवाओं में नियुक्ति के लिए अयोग्यता नहीं माना जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम 2000 की धारा 19 में प्रावधान है कि किसी अन्य कानून में किसी बात के होते हुए भी कोई किशोर जिसने कोई अपराध किया है और इसके साथ इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की गई है। उसे ऐसे कानून के तहत अपराध के लिए दोष सिद्धि से जुड़ी अयोग्यता, यदि कोई हो तो नहीं मिलेगी।
याचिका पर आया फैसलाइलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने पुंडरीकाक्ष की याचिका पर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 19(1) के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है कि यह एक गैर बाधित खंड से शुरू होता है, जो किसी और मामले में किसी अन्य कानून की प्रायोजकता को बाहर करता है।
पीठ ने कहा कि अधिनियम में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि एक किशोर जिसने कोई अपराध किया है। उसके साथ अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई है हुई है। उसे ऐसे कानून के तहत किसी अपराध के लिए दोष सिद्धि से जरूरी अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
याची कर्मचारी पुंडरीकाक्ष ने विभाग की ओर से संचालित भर्ती अभियान 2019 में पीजीटी पद के लिए आवेदन कर प्रतिभाग किया था। याची पीजीटी में नवोदय विद्यालय गौरीगंज में नियुक्त हुआ था। इसके खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
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