लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आकाश आनंद की बहुजन समाज पार्टी में वापसी हो गई है। उनकी सियासी पारी पूरे प्रदेश में चर्चा में है। दरअसल पहली बार 2019 से शुरू हुई आकाश आनंद की सियासी पारी परवान चढ़ने से पहले ही बड़े हिचकोले खाती रही है। राजनीति भले ही उन्हें विरासत में मिली हो लेकिन बुआ मायावती की कसौटी पर खरा उतरना उनके लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती रही है। कभी अपरिपक्व तो अपनी ससुराल के कारण आकाश आनंद को बुआ की नाराजगी झेलनी पड़ी। आखिरकार काफी उहापोह की स्थिति से जूझने के बाद उनकी बसपा में वापसी तो हो गई है लेकिन लखनऊ के सत्ता गलियारे में एक सवाल तैरने लगा है। क्या आकाश आनंद मायावती की कसौटी पर अब खरे उतर पाएंगे? बसपा को फिर से पुरानी पहचान दिला पाएंगे? दरअसल मायावती खुद जिन्होंने कांशीराम के साथ मिलकर बसपा को सत्ता तक पहुंचाया। कांशीराम के बाद उनका उत्तराधिकार बखूबी संभाला और 2007 में यूपी जैसे बड़े राज्य में अकेले दम पर बहुमत की सरकार भी बनाई। वह इस समय सियासी तौर पर संघर्ष करती दिख रही हैं। पिछले एक दशक में बसपा सुप्रीमाे को हर तरफ सिर्फ हार ही झेलनी पड़ी है। 90 के दशक की आक्रामक मायावती अब नहीं दिखतीं। वह कई वर्ष पहले ही कह चुकी थीं कि वह अब चुनाव नहीं लड़ेंगीं। इसके बाद वह विधानपरिषद सदस्य और राज्यसभा सदस्य जरूर रहीं लेकिन वर्तमान में अब वह किसी भी सदन का हिस्सा नहीं हैं। न ही उनकी पार्टी के पास इतने 'नंबर' हैं कि वह सीधे उच्च सदन का हिस्सा बन सकें।पार्टी की स्थिति ये है कि 2014 में शून्य के बाद बसपा 2017 के यूपी चुनाव में 19 सीट, 2019 लोकसभा चुनाव में 10 सीटें, 2022 यूपी चुनाव में में सिर्फ एक सीट और अब 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी फिर से शून्य पर खड़ी है। बसपा संगठन के लिहाज से भले ही राष्ट्रीय पार्टी हो लेकिन उसका सबसे बड़ा गढ़ उत्तर प्रदेश में टूट चुका है। पहले भाजपा ने उसके गैर जाटव वोटबैंक में सेंध लगाई, अब अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी भी मायावती के कई करीबी नेताओं को तोड़कर दलित वोट बैंक पर निशाना साध रखा है। आकाश की एंट्री से जगी थी उम्मीदइन सबके बीच 2019 में मायावती ने उत्तराधिकारी के तौर पर अपने भाई आनंद के बेटे आकाश आनंद को पेश किया। आकाश को राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया। आकाश आनंद के पार्टी में शामिल होने का असर भी दिखने लगा। बसपा एक्स से लेकर फेसबुक और यूट्यूब जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी एक्टिव दिखने लगी। ऐसा लगा कि मायावती अब धीरे-धीरे एक्टिव पॉलिटिक्स से दूर हो जाएंगीं और आकाश आनंद ही आगे बढ़ेंगे। लेकिन 2024 के घटनाक्रम ने कहानी पलट दी। लोकसभा चुनाव का वो दौर था, आकाश आनंद अपने फायरब्रांड भाषणों से सुर्खियां बटाेर रहे थे। इस बीच उनके सीतापुर में दिए गए एक भाषण पर आकाश के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। मायावती की कड़वी दवाइसके बाद अचानक मायावती का फरमान आ गया। उन्होंने आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक पद से हटाते हुए तर्क दिया कि अभी उन्हें और परिपक्व होने की जरूरत है। इस लोकसभा चुनाव में बसपा का फिर से 2014 वाला ही प्रदर्शन रहा, वह शून्य पर खड़ी हो गई। साफ जाहिर हुआ कि अगर मायावती आकाश आनंद को मोर्चे से नहीं हटातीं। तो 2024 लोकसभा चुनाव का खराब प्रदर्शन में कहीं न कहीं आकाश आनंद भी घेरे में आते। ऐसा तब और साफ दिखने लगा जब लोकसभा चुनाव के बाद आकाश आनंद की फिर से वापसी हो गई। उन्हें दिल्ली चुनाव का प्रभारी भी बनाया गया। हालांकि इस चुनाव में भी बसपा का जनाधार और सिकुड़ गया। यूपी उपचुनाव में भी बसपा कुछ खास नहीं कर सकी। आकाश आनंद भले ही मेहनत खूब किए हों लेकिन बसपा को इसका लाभ नहीं दिला सके। दिल्ली चुनाव के बाद फरवरी आते-आते आकाश की कहानी में एक और ट्विस्ट आ गया। मायावती ने एक कड़ा फैसला लेते हुए पार्टी के राज्यसभा सांसद रहे और आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर कर दिया। इसके बाद मायावती ने आकाश आनंद को भी 2 मार्च को गुटबाजी के आरोप में बसपा के सभी पदों से हटा दिया और अगले ही दिन उन्हें बीएसपी से भी निष्कासित कर दिया गया। बसपा सुप्रीमो की तरफ से साफ किया गया कि आकाश आनंद अपने ससुराल वालों के प्रभाव में हैं। मायावती के इस फैसले के बाद आकाश आनंद की तरफ से बकायदा सोशल मीडिया के जरिए गलतफहमियों का जिक्र करते हुए माफी मांगी गई। डॉ. आंबेडकर जयंती के मौके पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने उन्हें माफ करते हुए दोबारा पार्टी में शामिल करने का ऐलान किया। अब मायावती ने उन्हें चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाने के अलावा जल्द ही उन्हें देशभर में पार्टी के कार्यक्रम और अभियानों की जिम्मेदारी देने के संकेत भी दिए। क्या है आकाश आनंद का राजनीतिक भविष्य? साल भर सियासी भूचाल झेलने वाले आकाश आनंद पर अब पूरे प्रदेश की नजर है। सियासी जानकार कहते हैं कि जिस तरह से मायावती ने कहा दिया है कि उनके रहते वह पार्टी की कमान किसी को नहीं सौंपने वालीं, इससे ये तो साफ है कि मायावती को विश्वास में लेकर ही आकाश आनंद अपनी सियासी पारी आगे बढ़ा सकते हैं। पिछले साल भर के फैसलों पर नजर डालें तो मायावती उत्तराधिकार को लेकर साफ दिख रही हैं, लेकिन इससे पहले वह चाहती हैं कि आकाश आनंद इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने लायक बन जाएं। जाहिर है एक तरफ आकाश आनंद को मायावती की कसौटी पर खरे उतरना है, वहीं दूसरी तरफ बसपा को दोबारा खड़ा करने की बड़ी चुनौती से पार पाना है। बदले दौर में राजनीति हाइटेक रूप ले रही है। खुद मायावती जनता से ऑनलाइन ही संवाद करती हैं। बसपा की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि पार्टी में पुराने नेता अब गिनती के हैं और नई पौध यानी युवा कार्यकर्ताओं की भारी कमी है। हालांकि बसपा ने इसे देखते हुए बहुजन वॉलंटिअर फोर्स खड़ी करने की रणनीति बनाई है। लेकिन सवाल यही है कि क्या आकाश आनंद को 'खुलकर खेलने' का मौका मिल पाएगा?
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