वॉशिंगटन: दूसरे विश्वयुद्ध से पहले तक जापान की ज्यादातर कंपनियां एडवांस हथियार बनाने में माहिर थीं। लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान ने जंग से तौबा कर ली। हथियार बनाने वाली कई जापानी कंपनियों ने टेक्नोलॉजी में कमाल करना शुरू कर दिया। लेकिन अब जबकि फिर से जियो-पॉलिटिकल हालात बदल रहे हैं तो जापान एक बार फिर से हथियारों के निर्माण में काम करने मैदान में उतर चुका है। ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक अब भारत, जापान के साथ संभावित एयरोस्पेस, खासकर एडवांस लड़ाकू विमान इंजन में सहयोग करने के लिए आगे बढ़ सकते है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले से परिचित लोगों ने संकेत दिया है कि फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के साथ साथ भारत जापान के भी संपर्क में है, ताकि एडवांस लड़ाकू विमानों की इंजन का निर्माण किया जा सके। भारत की कोशिश ट्विन इंजन फाइटर प्रोजेक्ट्स के लिए हाई परफॉर्मेंस इंजन का को-प्रोडक्शन करना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि DRDO तीनों देशों से मिले ऑफर का मूल्यांकन करेगा और रक्षा मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
अमेरिका को बाय बाय बोल सकता है भारत
दरअसल अमेरिका के साथ जून 2023 में भारत ने GE F414 इंजन के घरेलू उत्पादन के लिए समझौता किया था। इस समझौते के तहत 80% तक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर शामिल है, लेकिन मौजूदा भू-राजनीतिक हालात ने अमेरिका को लेकर भारत के विश्वास को बुरी तरह से कुचल दिया है। ऐसे में भारत नये ऑप्शंस की तलाश कर रहा है। जापान की रक्षा कंपनियों ने पिछले कुछ सालों में नौसेना क्षेत्र में कमाल किया है और अब उसका मकसद एयरोस्पेस में जापान की ताकत को दिखाना है। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के साथ जापान की कंपनी मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज (एमएचआई) का 6.5 बिलियन डॉलर का फ्रिगेट सौदा इसी का हिस्सा है।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से जापान जो कुछ हथियार बनाता था, उसके निर्यात पर उसने प्रतिबंध लगा रखा था। उसने अपनी डिफेंस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अपनी सुरक्षा के लिए किया। लेकिन 2014 के बाद से जापान ने अपनी नीति बदलनी शुरू कर दी है। हालांकि 2016 में उस वक्त जापान को बड़ा झटका लगा, जब 35 अरब डॉलर का ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बी प्रोजेक्ट उसके हाथ से निकल गया। ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ सौदा कर लिया। हालांकि बाद में ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस को भी धोखा दे दिया और उसने अमेरिका-यूके के साथ AUKUS का गठन कर लिया और उसी के तहत न्यूक्लियर पनडु्ब्बी बनाने की घोषणा अमेरिका के साथ मिलकर कर दी। लेकिन पिछले साल रिपोर्ट आई थी कि अमेरिका और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बी के लिए कई टेक्नोलॉजी नहीं दे रहे हैं, जिससे प्रोजेक्ट फंस गया है।
भारत-जापान में होगा इंजन सहयोग समझौता?
भारत और जापान काफी करीबी संबंध रखते हैं। जापान की मदद से ही भारत बुलेट ट्रेन बना रहा है। ऐसे में अगर दोंनों देशों के बीच अगर फाइटर जेट इंजन बनाने का समझौता होता तो इसे स्ट्रैटजि पार्टनरशिप का हिस्सा माना जाएगा। इसके अलावा भारत के लिए जापानी इंजन टेक्नोलॉजी हासिल करना पश्चिमी सप्लायर पर निर्भरता घटाने और सप्लाई चेन में आने वाली बाधाओं से बचने का तरीका हो सकता है। अमेरिका ने कई महीनों तक भारत को तेजस लड़ाकू विमान की इंजन नहीं दी, जिससे तेजस के प्रोडक्शन पर असर पड़ा। लेकिन अगर भारत और जापान के बीच कोई समझौता होता है तो भारत ऐसी दिक्कों से बच जाएगा।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले से परिचित लोगों ने संकेत दिया है कि फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के साथ साथ भारत जापान के भी संपर्क में है, ताकि एडवांस लड़ाकू विमानों की इंजन का निर्माण किया जा सके। भारत की कोशिश ट्विन इंजन फाइटर प्रोजेक्ट्स के लिए हाई परफॉर्मेंस इंजन का को-प्रोडक्शन करना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि DRDO तीनों देशों से मिले ऑफर का मूल्यांकन करेगा और रक्षा मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
अमेरिका को बाय बाय बोल सकता है भारत
दरअसल अमेरिका के साथ जून 2023 में भारत ने GE F414 इंजन के घरेलू उत्पादन के लिए समझौता किया था। इस समझौते के तहत 80% तक टेक्नोलॉजी ट्रांसफर शामिल है, लेकिन मौजूदा भू-राजनीतिक हालात ने अमेरिका को लेकर भारत के विश्वास को बुरी तरह से कुचल दिया है। ऐसे में भारत नये ऑप्शंस की तलाश कर रहा है। जापान की रक्षा कंपनियों ने पिछले कुछ सालों में नौसेना क्षेत्र में कमाल किया है और अब उसका मकसद एयरोस्पेस में जापान की ताकत को दिखाना है। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के साथ जापान की कंपनी मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज (एमएचआई) का 6.5 बिलियन डॉलर का फ्रिगेट सौदा इसी का हिस्सा है।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से जापान जो कुछ हथियार बनाता था, उसके निर्यात पर उसने प्रतिबंध लगा रखा था। उसने अपनी डिफेंस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अपनी सुरक्षा के लिए किया। लेकिन 2014 के बाद से जापान ने अपनी नीति बदलनी शुरू कर दी है। हालांकि 2016 में उस वक्त जापान को बड़ा झटका लगा, जब 35 अरब डॉलर का ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बी प्रोजेक्ट उसके हाथ से निकल गया। ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ सौदा कर लिया। हालांकि बाद में ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस को भी धोखा दे दिया और उसने अमेरिका-यूके के साथ AUKUS का गठन कर लिया और उसी के तहत न्यूक्लियर पनडु्ब्बी बनाने की घोषणा अमेरिका के साथ मिलकर कर दी। लेकिन पिछले साल रिपोर्ट आई थी कि अमेरिका और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बी के लिए कई टेक्नोलॉजी नहीं दे रहे हैं, जिससे प्रोजेक्ट फंस गया है।
भारत-जापान में होगा इंजन सहयोग समझौता?
भारत और जापान काफी करीबी संबंध रखते हैं। जापान की मदद से ही भारत बुलेट ट्रेन बना रहा है। ऐसे में अगर दोंनों देशों के बीच अगर फाइटर जेट इंजन बनाने का समझौता होता तो इसे स्ट्रैटजि पार्टनरशिप का हिस्सा माना जाएगा। इसके अलावा भारत के लिए जापानी इंजन टेक्नोलॉजी हासिल करना पश्चिमी सप्लायर पर निर्भरता घटाने और सप्लाई चेन में आने वाली बाधाओं से बचने का तरीका हो सकता है। अमेरिका ने कई महीनों तक भारत को तेजस लड़ाकू विमान की इंजन नहीं दी, जिससे तेजस के प्रोडक्शन पर असर पड़ा। लेकिन अगर भारत और जापान के बीच कोई समझौता होता है तो भारत ऐसी दिक्कों से बच जाएगा।
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