नई दिल्ली: अमेरिका ने रूसी तेल पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' की है। इसके लिए रूस की तेल दिग्गज कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल को निशाना बनाया गया है। इन दोनों पर 21 नवंबर से नए प्रतिबंध लागू होने वाले हैं। इसके पहले भारत के तेल रिफाइनर रूसी कच्चे तेल की खरीद बढ़ा रहे हैं। हालांकि, सरकार इस संभावित रुकावट से निपटने की अपनी योजनाओं पर अभी चुप्पी साधे हुए है। इससे सस्पेंस गहरा रहा है।
ग्लोबल एनालिटिक्स फर्म केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने अक्टूबर में प्रतिदिन 16.2 लाख बैरल (बीपीडी) रूसी कच्चा तेल आयात किया। यह सितंबर के लगभग बराबर है। इस महीने के अंत में प्रतिबंधों के प्रभावी होने से पहले, रिफाइनर अपनी अनुबंध वाली खेपों को सुरक्षित करने के लिए जल्दबाजी कर रहे हैं। इससे आयात में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
भारतीय कंपनियां बंदोबस्त में जुटीं इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम और नायरा एनर्जी जैसे सार्वजनिक और निजी रिफाइनरों ने पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रूसी शिपमेंट को पहले ही मंगा लिया है। रोसनेफ्ट समर्थित नायरा ने महीनों तक सीमित आवक के बाद अक्टूबर में अपनी लगभग पूरी कच्चे तेल की जरूरतें पूरी कर लीं।
अमेरिका के ट्रेजरी विभाग के ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल (ओएफएसी) की ओर से लगाए गए ये प्रतिबंध यूक्रेन संघर्ष के बीच रूस के ऊर्जा क्षेत्र पर प्रतिबंधों को कड़ा करने के उद्देश्य से हैं। ये प्रतिबंध रूसी तेल के व्यापार में शामिल कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं को निशाना बनाते हैं।
अमेरिका से तेल आयात में अचानक बढ़ोतरी
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि भारत ऊर्जा सुरक्षा और उपभोक्ताओं की सामर्थ्य को प्राथमिकता देना जारी रखेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रिफाइनर व्यावसायिक विचारों पर काम करते हैं। एक सूत्र ने कहा कि रिफाइनर व्यवहार्य स्रोतों से कच्चा तेल सुरक्षित करने के लिए स्वतंत्र हैं।
अगर नवंबर के बाद रूसी सप्लाई में कमी आती है तो रिफाइनरों के इराक, सऊदी अरब, यूएई, लैटिन अमेरिका और पश्चिम अफ्रीका से ज्यादा तेल हासिल करने की उम्मीद है। केप्लर के आंकड़ों से पता चलता है कि अक्टूबर में भारत को अमेरिकी कच्चे तेल की शिपमेंट लगभग तीन गुना बढ़कर लगभग 5,68,000 बीपीडी हो गई।
क्या रूसी तेल पर बदलेगा का सरकार का रुख?
विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव के बावजूद सरकार की ओर से अपनी स्थिति बदलने की संभावना नहीं है। कारण है कि भारत अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए किफायती ईंधन सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। रिफाइनरों से किसी भी संभावित कमी से बचने के लिए स्रोतों में विविधता लाना जारी रखने की उम्मीद है। साथ ही घरेलू कीमतों को स्थिर बनाए रखने पर भी फोकस है। भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उपभोक्ता है। इसलिए अधिकारियों का कहना है कि आने वाले महीनों में ऊर्जा नीति को रणनीतिक फ्लेक्सिबिलिटी और बाजार-संचालित निर्णय निर्देशित करेंगे।
ग्लोबल एनालिटिक्स फर्म केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने अक्टूबर में प्रतिदिन 16.2 लाख बैरल (बीपीडी) रूसी कच्चा तेल आयात किया। यह सितंबर के लगभग बराबर है। इस महीने के अंत में प्रतिबंधों के प्रभावी होने से पहले, रिफाइनर अपनी अनुबंध वाली खेपों को सुरक्षित करने के लिए जल्दबाजी कर रहे हैं। इससे आयात में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
भारतीय कंपनियां बंदोबस्त में जुटीं इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम और नायरा एनर्जी जैसे सार्वजनिक और निजी रिफाइनरों ने पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रूसी शिपमेंट को पहले ही मंगा लिया है। रोसनेफ्ट समर्थित नायरा ने महीनों तक सीमित आवक के बाद अक्टूबर में अपनी लगभग पूरी कच्चे तेल की जरूरतें पूरी कर लीं।
अमेरिका के ट्रेजरी विभाग के ऑफिस ऑफ फॉरेन एसेट्स कंट्रोल (ओएफएसी) की ओर से लगाए गए ये प्रतिबंध यूक्रेन संघर्ष के बीच रूस के ऊर्जा क्षेत्र पर प्रतिबंधों को कड़ा करने के उद्देश्य से हैं। ये प्रतिबंध रूसी तेल के व्यापार में शामिल कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं को निशाना बनाते हैं।
अमेरिका से तेल आयात में अचानक बढ़ोतरी
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि भारत ऊर्जा सुरक्षा और उपभोक्ताओं की सामर्थ्य को प्राथमिकता देना जारी रखेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रिफाइनर व्यावसायिक विचारों पर काम करते हैं। एक सूत्र ने कहा कि रिफाइनर व्यवहार्य स्रोतों से कच्चा तेल सुरक्षित करने के लिए स्वतंत्र हैं।
अगर नवंबर के बाद रूसी सप्लाई में कमी आती है तो रिफाइनरों के इराक, सऊदी अरब, यूएई, लैटिन अमेरिका और पश्चिम अफ्रीका से ज्यादा तेल हासिल करने की उम्मीद है। केप्लर के आंकड़ों से पता चलता है कि अक्टूबर में भारत को अमेरिकी कच्चे तेल की शिपमेंट लगभग तीन गुना बढ़कर लगभग 5,68,000 बीपीडी हो गई।
क्या रूसी तेल पर बदलेगा का सरकार का रुख?
विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव के बावजूद सरकार की ओर से अपनी स्थिति बदलने की संभावना नहीं है। कारण है कि भारत अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए किफायती ईंधन सुनिश्चित करने पर केंद्रित है। रिफाइनरों से किसी भी संभावित कमी से बचने के लिए स्रोतों में विविधता लाना जारी रखने की उम्मीद है। साथ ही घरेलू कीमतों को स्थिर बनाए रखने पर भी फोकस है। भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उपभोक्ता है। इसलिए अधिकारियों का कहना है कि आने वाले महीनों में ऊर्जा नीति को रणनीतिक फ्लेक्सिबिलिटी और बाजार-संचालित निर्णय निर्देशित करेंगे।
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