-हिन्दू समाज के विघटन रोकने काे तीनों विचारधाराओं के धर्मगुरुओं व विचारकों को एक मंच पर लाना आवश्यक
मुरादाबाद, 20 अप्रैल . अध्यात्म ज्ञान एवं चिन्तन संस्था की 180वीं मासिक ब्रह्मज्ञान विचार गोष्ठी का आयोजन एमआईटी कालेज के सभागार में हुई. जिसका विषय “हिन्दू समाज में प्रचलित तीन विचारधाराओं-सनातनी (मूर्तिपूजक), आर्यसमाजी तथा नास्तिक में सामंजस्य के तरीके”. इस विषय का विवेचन करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर गुप्ता ने बताया कि हमारे हिन्दू समाज में इन तीन विचारधाराओं के कारण कभी-कभी विचार-वैमनस्य उत्पन्न हो जाता है. यह भी हिन्दू समाज में विघटन होने का एक कारण है. उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज में विघटित न हो इसके लिए तीनों प्रकार की विचारधाराओं को मानने वाले धर्मगुरुओं तथा विचारकों को एक मंच पर लाना आवश्यक है.
नास्तिक विचारधारा के बारे में सुधीर गुप्ता ने बताया कि नास्तिकवाद में ईश्वर या परलोक की अवधारणा को नहीं माना जाता है. इसके अनुसार संसार में केवल भौतिक तत्व ही वास्तविक है और ज्ञान का एकमात्र स्रोत इन्द्रिय अनुभव है. इसको हम चार्वाक दर्शन के नाम से भी जानते हैं. जिसका प्रारम्भ लगभग 600 ईसा पूर्व में हुआ था. इसमें पुनर्जन्म को नहीं माना जाता है.
आर्यसमाज के बारे में सूर्यप्रकाश द्विवेदी ने बताया कि आर्यसमाज महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा सन् 1875 में स्थापित ऐसी संस्था है जिसकी सभी मान्यताएं व उद्देश्य ईश्वरीय ज्ञान “वेद” पर आधारित हैं. इसके अनुसार समस्त विश्व तीन सत्ताओं ईश्वर, जीव एवं प्रकृति का ही प्रसार है. यह पुनर्जन्म के सिद्धांत का समर्थक है.
रवीन्द्र नाथ कत्याल ने बताया कि सनातन धर्म अनंत काल से चल रहा है और यह एक बहुत खुला धर्म है, इसमें कोई रुढ़िवादिता नहीं है. सनातन धर्म के मानने वाले जिस प्रकार भी चाहें अपने जीवन को व्यतीत कर सकते हैं. लेकिन उन्हें समाज को साथ लेकर चलना होगा. चाहे वे ईश्वर को माने या न माने, पूजा करें या न करें, फिर भी वे सनातनी रहेंगे. सनातन धर्म में पुनर्जन्म के सिद्धांत को माना जाता है.
/ निमित कुमार जायसवाल
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